Society of Mission 4G Plus- Gaon,Ganga,Goan,Gayatri

गंगा संरक्षण

गंगा: जीवन की धारा, संस्कृति की आत्मा

गंगा केवल एक नदी नहीं है — वह हमारी सांस्कृतिक विरासत, जीवनशैली और अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। मिशन 4G (Ganga, Green, Growth, Governance) इस जीवनदायिनी नदी को स्वच्छ, अविरल और सतत बनाए रखने के लिए कई स्तरों पर कार्य कर रहा है। यह मिशन स्थानीय समुदायों, जनजातीय समूहों, स्वच्छता समितियों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी में गंगा क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक उत्थान की दिशा में अग्रसर है।

मुख्य कार्यक्रम

  1. नदीनगर सफाई अभियान
    – गंगा तट पर बसे गांवों, कस्बों और घाटों की नियमित सफाई, प्लास्टिक-अपशिष्ट प्रबंधन, और जन-जागरूकता रैलियाँ।

  2. जल संरक्षण पहल
    वर्षा जल संचयन, तालाब और कुंओं का पुनर्निर्माण, पारंपरिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार, तथा आधुनिक तकनीकों से जल संग्रहण।

  3. पर्यावरण शिक्षा और जन-जागरूकता
    – स्कूलों, कॉलेजों और पंचायत स्तर पर पर्यावरण क्लब, वर्कशॉप, चित्रकला/निबंध प्रतियोगिताएं और गंगा महोत्सव जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को संवेदनशील बनाना।

  4. जनजातीय साक्षरता एवं सहभागिता
    – गंगा घाटी में रहने वाले जनजातीय समुदायों के लिए साक्षरता, स्वच्छता, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।

  5. स्थानीय स्वच्छता समितियों का गठन एवं सशक्तिकरण
    – ग्रामीण स्तर पर स्वयंसेवी समितियाँ गठित करना जो निगरानी, कचरा प्रबंधन और स्थानीय निर्णयों में भागीदारी निभाएं।

  6. साफ-सुथरा पर्यटन (Eco-Tourism)
    – गंगा किनारे पर्यटन स्थलों को स्वच्छ और पर्यावरण-मित्र बनाना; स्थानीय लोगों को मार्गदर्शक, हस्तशिल्प विक्रेता और पर्यावरण प्रहरी के रूप में प्रशिक्षित करना।

  7. औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण
    – स्थानीय उद्योगों के साथ मिलकर ज़ीरो-डिस्चार्ज पॉलिसी को लागू करना और प्रदूषणकारी इकाइयों की निगरानी में जनभागीदारी।

प्रभाव और लाभ

  • गंगा जल की गुणवत्ता में सुधार – जल में घुलित ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा, रासायनिक प्रदूषकों में गिरावट।

  • स्वास्थ्य में सुधार – जलजनित रोगों में कमी, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में संक्रमण दर घटी।

  • समुदायों की आर्थिक स्थिति में सुधार – पर्यावरणीय पर्यटन, मत्स्य पालन, कुटीर उद्योग और स्वच्छता से जुड़ी सेवाओं से नई आजीविका के अवसर।

  • सामाजिक जागरूकता व भागीदारी में वृद्धि – लोग केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि परिवर्तन के सहभागी बने।

  • जल-आधारित संसाधनों का संरक्षण – खेती, पशुपालन और घरेलू उपयोग के लिए जल उपलब्धता में स्थायित्व।